मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

झीरम संस्मरण-2


    दैनिक भास्कर 1 जुलाई 2014 ज्वाइनिंग के बाद ट्रेनिंग प्रोग्राम और फिर कहानी शुरू हुई झीरम से जुड़ने की। दरअसल यह मौका मुझे मार्च 2015 में मिला, झीरम को करीब से जानने का। दैनिक भास्कर के सीनियर लीगल रिपोर्टर अनुपम सिंह जी के दैनिक भास्कर अलविदा कहने के बाद मुझे यह मौका मिला था। वहीं मैं पहली बार किसी मामले की न्यायिक सुनवाई में भाग लेने पहुंचा था। इससे पहले भी दो बार न्यायालय के अंदर जाने का मौका मिला था। इसमें एक मामला अंबिकापुर का बहुचर्चित रित्विक हत्याकांड की रिपोर्टिंग जिला कोर्ट के भीतर करने का था। वहीं दूसरा मेरे खुद के एक मामले में जाने का मौका मिला था। इस सुनवाई में किसी अधिकारी का प्रतिपरीक्षण लिया गया, इसकी रिपोर्टिंग करने के बाद मैं लौट आया। उतना कुछ खास समझ में भी नहीं आया क्योंकि न्यायालयीन प्रक्रिया और शब्द कठीन होते हैं। यही कारण था, कि मैं इस न्यूज को नहीं लिखा, सिर्फ रिपोर्टिंग किया। हां इसके बाद मैं लगातार हाईकोर्ट, जिला कोर्ट, उपभोक्ता फोरम और अधिवक्ताओं के संपर्क में रहा। इसके कारण मैं न्यायालयीन प्रक्रिया को समझ जल्दि गया। इसके बाद झीरम की जब भी सुनवाई हुई बड़ी-बड़ी खबरें लिखता। क्योंकि मैं उस मामले में बिल्कुल नया था। साथ ही इसलिए भी क्योंकि 25 मई 2013 के बाद लगभग दो साल बाद मामले को करीब से जानने का मौका मिला था। इसके बाद एक के बाद एक अधिकारियों का बयान होता गया, प्रतिपरीक्षण बिलासपुर के पुराने हाईकोर्ट परिसर स्थित चेंबर में सुनवाई चलती रही। हम सब रिपोर्टिंग करते रहे। यहां जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में सुनवाई चलती है हालिया सुनवाई 2016 अप्रैल 28 और 29 को होना तय किया गया है। इसमें कांग्रेस के तरफ से अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव, देवेंद्र प्रताप सिंह और संकल्प दुबे हैं तो शासन के तरफ से ज्यादातर समय मैंने राजीव श्रीवास्तव को पैरवी करते देखा। वहीं सभी सुनवाई में कांग्रेस के तरफ से कोई पहुंचा तो वो हैं चिका बाजपेई उर्फ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव डॉ. विवेक बाजपेई की उपस्थिति होती है। यहीं से मैं जुड़ा इस सुनवाई से और नक्सलियों को जानने,कांग्रेस को जानने, भाजपा सहित न्यायालयीन प्रणाली और न्यायिक आयोग की सुनवाई को जानने का मौका मिला।
          यही नहीं इस सुनवाई में कई बार ऐसा लगा कि यह हमला भाजपा सरकार ने ही कराया है, तो कई बार कांग्रेस की गलती दिखती है, कुल मिलाकर इसमें सुरक्षा में चूक की जो बात कांग्रेस करती है उसके जवाब में भाजपा के तरफ से यह कहा जाना भी सही है कि कांग्रेसियों ने देरी से काफिला निकाला। इसके बाद भी कई जगहों पर सुरक्षा में चूक नजर तो आती है, लेकिन यह न्यायिक आयोग का मामला है कि जांच में क्या है, क्या नहीं। वहीं इंट्रेस्टेड मामला यह भी रहा है कि एक जज ने अपने आप को इस मामले से अलग करने और जगदलपुर ट्रांसफर होने के भय से कई नौटंकिया किए( ऐसा जन चर्चा रही उनके ट्रांसफर के बाद)। हालांकि यह मामला बहुंत ही संवेदनशील है तो उतना ही दर्दनाक और भयानक भी। कितनी बेरहमी से इंसान को माराजा सकता है इस घटना में किया गया, शर्म तो उस सरकार को आनी चाहिए कि इसके बाद भी बस्तर अंचल में नक्सल मौजूद हैं। उन जवानों के हाथ बांध कर रखे हैं जिनके लिए उस क्षेत्र मे ंएक दिन भी गुजार पाना मुश्कील है। यह अघोषित युद्ध का मैदान बन चुके बस्तर की कहानी है, इसे बस्तर भ्रमण के बाद ही समझा जा सकाता है, फिलहाल जगदलपुर और सुकमा के बीच दरभा थाना क्षेत्र के झीरम घाटी की बात हो रही है। उस मुद्दे पर बना रहना जरूरी है क्योंकि राजनीति में ज्यादा घुसने पर यह लेख डिस्प्यूटेड हो सकता है।
आने वाली कड़ी...
 झीरम संस्मरण-3 

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