गुरुवार, 4 जून 2020

झीरम संस्मरण 3

अब तक झीरम कांड में हुए सभी कुछ जामे न्यायिक आयोग में कांग्रेस के अधिवक्ता रहे सुदीप श्रीवास्तव की जुबानी। 

शनिवार, 30 मई 2020

झीरम संस्मरण-3

घटना में घायल लोगों की जुबानी 


झीरम कांड/ जांच आयोग के फैसले के विरोध में राज्य सरकार की याचिका को हाइकोर्ट ने खारिज किया

हाइकोर्ट ने कहा- आयोग अपना फैसला लेने में सक्षम, हस्तक्षेप से किया इनकार

न्यायिक आयोग ने राज्य शासन के 5 गवाहों के आवेदन को निरस्त किया था

भाजपा शासन में जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में आयोग गठित हुआ था

लीगल रपोर्टर बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट ने 28 जनवरी को झीरम घटना से संबधित राज्य सरकार की अपील याचिका को खारिज कर दिया है। सरकार की ओर से सिंगल बेंच और न्यायिक जांच आयोग के फैसले के विरोध में अपील याचिका लगाई गई थी। हाइकोर्ट ने कहा कि आयोग अपना फैसला लेने में सक्षम है और हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। न्यायिक आयोग ने राज्य शासन के 5 गवाहों के आवेदन को निरस्त कर दिया था। सरकार की ओर से आयोग में गवाही देने के लिए आना चाहते थे। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन और जस्टिस पीपी साहू की डिवीजन बेंच में हुई।


आयोग में अंतिम सुनवाई 11 अक्टूबर को हुई थी


बस्तर के झीरम घाटी में 25 मई 2013 को शाम 4.45 बजे कांग्रेस की परिवर्तन रैली के काफिले पर नक्सलियों ने हमला कर दिया था। हमले में कांग्रेस के शीर्ष नेता महेंद्र कर्मा, नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल सहित 33 कांग्रेसी और पुलिस जवानों की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद पूववर्ती भाजपा सरकार ने जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था। आयोग की अंतिम सुनवाई 11 अक्टूबर 2019 को हुई थी। इस दिन शासन के तरफ से नक्सल ऑपरेशन के डीआईजी पी. सुंदरराज ने गवाही दी थी। इसके बाद आयोग ने फैसले‌के लिए दोनों पक्षों को अपना तर्क लिखित में प्रस्तुत करने कहा था। सुनवाई के दौरान आयोग में राज्य शासन की ओर से कांग्रेस के दिवंगत नेता महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा, बेटी तूलिका कर्मा, डॉ. चुलेश्वर चंद्राकर, हर्षद मेहता व सुरेंद्र शर्मा के गवाही के लिए आवेदन दिया गया था। साथ ही गुरिल्लावार स्कूल नक्सली वार फेयर के अधिकारी बीके पोनवार को टेक्निकल एक्सपर्ट के रूप में बुलाए जाने के आवेदन और मौखिक तर्क रखे जाने के आवेदन दिए थे। इन सभी आवेदनों को आयोग ने निरस्त कर दिया। राज्य सरकार ने इस आदेश को हाइकोर्ट में चुनौती दी थी। 


पहले सिंगल फिर डबल बेंच ने अपील खारिज किया

आयोग के फैसले को राज्य शासन ने हाईकोर्ट में चुनौती दिया। इसमें पहले हाइकोर्ट के जस्टिस पी. सेम कोशी की सिंगल बेंच ने मामले को खारिज की। इसके खिलाफ राज्य शासन हाइकोर्ट चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच में अपील याचिका दायर की। मामले में 20 जनवरी को चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच में अंतिम बहस हुई। दोनों पक्षों का तर्क और बहस सुनने के बाद कोर्ट ने मामले को फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया था। 28 जनवरी को कोर्ट राज्य शासन के अपील को खारिज कर दी।

मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

झीरम संस्मरण-2


    दैनिक भास्कर 1 जुलाई 2014 ज्वाइनिंग के बाद ट्रेनिंग प्रोग्राम और फिर कहानी शुरू हुई झीरम से जुड़ने की। दरअसल यह मौका मुझे मार्च 2015 में मिला, झीरम को करीब से जानने का। दैनिक भास्कर के सीनियर लीगल रिपोर्टर अनुपम सिंह जी के दैनिक भास्कर अलविदा कहने के बाद मुझे यह मौका मिला था। वहीं मैं पहली बार किसी मामले की न्यायिक सुनवाई में भाग लेने पहुंचा था। इससे पहले भी दो बार न्यायालय के अंदर जाने का मौका मिला था। इसमें एक मामला अंबिकापुर का बहुचर्चित रित्विक हत्याकांड की रिपोर्टिंग जिला कोर्ट के भीतर करने का था। वहीं दूसरा मेरे खुद के एक मामले में जाने का मौका मिला था। इस सुनवाई में किसी अधिकारी का प्रतिपरीक्षण लिया गया, इसकी रिपोर्टिंग करने के बाद मैं लौट आया। उतना कुछ खास समझ में भी नहीं आया क्योंकि न्यायालयीन प्रक्रिया और शब्द कठीन होते हैं। यही कारण था, कि मैं इस न्यूज को नहीं लिखा, सिर्फ रिपोर्टिंग किया। हां इसके बाद मैं लगातार हाईकोर्ट, जिला कोर्ट, उपभोक्ता फोरम और अधिवक्ताओं के संपर्क में रहा। इसके कारण मैं न्यायालयीन प्रक्रिया को समझ जल्दि गया। इसके बाद झीरम की जब भी सुनवाई हुई बड़ी-बड़ी खबरें लिखता। क्योंकि मैं उस मामले में बिल्कुल नया था। साथ ही इसलिए भी क्योंकि 25 मई 2013 के बाद लगभग दो साल बाद मामले को करीब से जानने का मौका मिला था। इसके बाद एक के बाद एक अधिकारियों का बयान होता गया, प्रतिपरीक्षण बिलासपुर के पुराने हाईकोर्ट परिसर स्थित चेंबर में सुनवाई चलती रही। हम सब रिपोर्टिंग करते रहे। यहां जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में सुनवाई चलती है हालिया सुनवाई 2016 अप्रैल 28 और 29 को होना तय किया गया है। इसमें कांग्रेस के तरफ से अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव, देवेंद्र प्रताप सिंह और संकल्प दुबे हैं तो शासन के तरफ से ज्यादातर समय मैंने राजीव श्रीवास्तव को पैरवी करते देखा। वहीं सभी सुनवाई में कांग्रेस के तरफ से कोई पहुंचा तो वो हैं चिका बाजपेई उर्फ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव डॉ. विवेक बाजपेई की उपस्थिति होती है। यहीं से मैं जुड़ा इस सुनवाई से और नक्सलियों को जानने,कांग्रेस को जानने, भाजपा सहित न्यायालयीन प्रणाली और न्यायिक आयोग की सुनवाई को जानने का मौका मिला।
          यही नहीं इस सुनवाई में कई बार ऐसा लगा कि यह हमला भाजपा सरकार ने ही कराया है, तो कई बार कांग्रेस की गलती दिखती है, कुल मिलाकर इसमें सुरक्षा में चूक की जो बात कांग्रेस करती है उसके जवाब में भाजपा के तरफ से यह कहा जाना भी सही है कि कांग्रेसियों ने देरी से काफिला निकाला। इसके बाद भी कई जगहों पर सुरक्षा में चूक नजर तो आती है, लेकिन यह न्यायिक आयोग का मामला है कि जांच में क्या है, क्या नहीं। वहीं इंट्रेस्टेड मामला यह भी रहा है कि एक जज ने अपने आप को इस मामले से अलग करने और जगदलपुर ट्रांसफर होने के भय से कई नौटंकिया किए( ऐसा जन चर्चा रही उनके ट्रांसफर के बाद)। हालांकि यह मामला बहुंत ही संवेदनशील है तो उतना ही दर्दनाक और भयानक भी। कितनी बेरहमी से इंसान को माराजा सकता है इस घटना में किया गया, शर्म तो उस सरकार को आनी चाहिए कि इसके बाद भी बस्तर अंचल में नक्सल मौजूद हैं। उन जवानों के हाथ बांध कर रखे हैं जिनके लिए उस क्षेत्र मे ंएक दिन भी गुजार पाना मुश्कील है। यह अघोषित युद्ध का मैदान बन चुके बस्तर की कहानी है, इसे बस्तर भ्रमण के बाद ही समझा जा सकाता है, फिलहाल जगदलपुर और सुकमा के बीच दरभा थाना क्षेत्र के झीरम घाटी की बात हो रही है। उस मुद्दे पर बना रहना जरूरी है क्योंकि राजनीति में ज्यादा घुसने पर यह लेख डिस्प्यूटेड हो सकता है।
आने वाली कड़ी...
 झीरम संस्मरण-3 

झीरम संस्मरण-1

 
मुझे याद है, मैं कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग का छात्र था। अपने दूसरे सेमेस्टर की तैयारी में जुटा हुआ था। उस दिन 25 मई 2013 था, सुबह मैं अपने साथियों के साथ यूनिवर्सिटी गया। यहां दोपहर 3.30 तक लाइब्रेरी में पुस्तकों के बीच उलझा रहा। इसके बाद कुछ आवश्यक पुस्तकों को लेकर हॉस्टल लौट आया। मेस में खाने खाने के बाद मैं अपने रूम में आराम करने चला गया। लगभग 45 मीनट आराम किया। इस समय इग्जाम की सभी तैयारी में भीड़े थे। तेज गर्मी से परेशान होकर मैं हॉस्टल के टीवी रूम में पहुंचा। यहां पर बैठा चैनल बदल-बदल कर टीवी देख रहा था। इसमें राज्य के स्थानीय न्यूज चैनल खासकर आईबीसी 24, जी 24 और ईटीवी पर ज्यादा फोकस था। साथ ही मुवी भी चला रहा था।

 इसी दौरान मैने झीरम शब्द पहली बार शाम लगभग 5.15 बजे सुना। यह न्यूज चैनल ईटीवी पर चल रहा था। इसमें तीन फूल स्क्रीन ब्रेकिंग न्यूज फ्लैस हुए। इसमें बताया गया कि कांग्रेस के परिवर्तन यात्रा पर नक्सलियों ने हमला किया है। यह भी बताया गया कि कांग्रेस की यात्रा सुकमा से जगदलपुर के लिए रवाना हुआ था। इसमें बड़े नेता शामिल हैं, और इसमें एक नाम नंदकुमार पटेल का लिया गया। मुझे याद है मैं पहली बार नंदकुमार पटेल से 2012 में अंबिकापुर के राजमोहनी देवी सभा भवन में मिला था। यहां पर किसी सम्मेलन में वे शिरकत करने पहुंचे थे। उनके मिलनसार व्यवहार से मैं वाकिफ था। इस नाम को सुनते ही मैं चौकन्ना हो गया, और हॉस्टल में मौजूद दोस्तों को घटना की जानकारी देने के लिए तेज आवाज में चिल्लाया। मेरी आवाज सुनते ही सभी भागते हुए से पहुंचे। इसके बाद हम सभी कभी ईटीवी तो कभी आईबीसी और जी छत्तीसगढ़ को देखना शुरू किया। शाम पांच बजे के बाद लगातार हो रही ब्रेकिंग में कई नेताओं के मारे जाने की जानकारी आने लगी। हम विचलित थे, क्या हुआ है, नक्सली पहली बार राज्य में किसी पार्टी के कार्यक्रम पर हमला किए हो। समय के साथ घटना स्थल की परिस्थितियां पता चलते गई। चैनलों में इस घटना की लगातार रिपोर्टिंग हो रही थी। बीच-बीच में राज्य और केंद्र के नेताओं की संवेदनाएं आ रही थी। शाम 6.30 बजे हमारे चाय टाइम में यह न्यूज पूरी तरह से पूरी हो गई थी। पुलिस मौके पर पहुंच कर मोर्चा संभाल लेने की जानकारी चैनल में प्रसारित हुआ और नक्सलियों के भाग जाने की बात कही गई। इसके बाद हम सभी साथी भी चाय की चुस्की लेते हुए इस मामले पर चर्चा करते रहे। इसके बाद हम सब घुमने निकल गए। गर्मी ज्यादा थी और सीनियर की लगातार उपस्थिति बढ़ती जा रही थी, उनके साथ भी घटना का डिस्कसन जारी था, सभी रिपोर्ट को लेकर जानकारी ले रहे थे। मैं शुरू से न्यूज देखा था, इसलिए जानकारी मेरे पास ज्यादा थी। इसलिए मैं सबको बता रहा था कि घटना कहां हुआ है, कितने लोग उस रैली में शामिल थे अनुमानित जो टीवी चैनल पर थे।   इसके बाद शाम 8.30 बजे तक हम घुमते रहे। वहीं खाना खाने के बाद एक बार फिर टीवी रूम में चहल पहल होने लगी। प्राइम टाइम को देखने के लिए पहले ही कई छात्र टीवी रूम में पहुंच चुके थे। वहीं खाना खाने में धीमी चाल होने के कारण मैं लगभग 9 बजे टीवी रूम पहुंचा। यहां सभी मौजूद थे सीनियर, जूनियर। मैं पहुंचा और अपना जगह लिया। इसके बाद मेरे दबाव डालने पर एक बार फिर स्थानीय चैनल को लगाया गया, उस समय सब मनोरंजन चैनल देख रहे थे। डांस कांपटिशन को हटाकर न्यूज चैनल लगाने पर जैसा घर में वातावरण बनता है कुछ वैसा ही वातावरण वहां भी बन गया। इसके बाद भी ज्यादातर ने मेरा समर्थन किया। हम सब फिर से एक बार न्यूज चैनल देखने लगे, रायपुर में थे तो स्थानीय नेताओं के नाम जानते थे। इसी दौरान पता चला कि विद्याचरण शुक्ल जो की मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के पुत्र हैं को गोली लगी है। वे गंभीर हालत में जगदलपुर रिफर किए गए हैं। वहीं मौके पर बस्तर के नेता महेंद्र कर्मा का शव गोलियों से छलनी मिलने की जानकारी भी आई। वहीं नंदकुमार पटेल और उनके बेटा दीपक पटेल के गायब होने की सूचना मिली। कुल मिलाकर 40 से अधिक लोगों के गोली लगने की जानकारी मिली। प्रदेश में ताड़मेटला कांड के बाद यह बड़ी घटना थी, और अपने तरह की पहली घटना। इसमें किसी पार्टी पर हमला हुआ हो, नेताओं को गोली मारी गई हो यह पहली बार हुआ था। हमला तो नेताओं के ऊपर पहले भी हुए थे, लेकिन पहली बार इस तरह सामूहिक रूप से नेताओं का नरसंहार किया गया था। सूचना भयानक थी, हमने खबर कंफर्म करने के बाद फिर से मनोरंजन चैनल देखा। इसके बाद एक-एक कर सब सोने चले गए। मेरा खाना और सोना दोनों लेट होने की आदत थी, इसलिए मैं देर तक टीवी रूम में बिताया। कभी मूवी देखता तो कभी न्यूज ऐसे करते हुए मैं रात 1 बजे तक टीवी के सामने डटा रहा। इसके बाद मैं अपने कमरे में चला गया और दूसरे दिन सुबह का इंतजार करने लगा। सोता जरूर देर से था, लेकिन सुबह जगने की आदत तेज थी। मैं दूसरे दिन सुबह 6 बजे जग गया। घूमने निकला तो न्यूज पेपर मिल गया, उस घटना को जल्दि से पढ़ने के बाद दूसरी अन्य खबरों को देखा और फिर घुमने निकल गया। वापस आया तो इस घटना को लेकर ही सभी चर्चा कर रहे थे। मैं भी ब्रश करके नाश्ते पर पहुंचा तो चर्चा जारी थी, मैं भी ग्रुप डिस्कन में भाग लिया। इसके बाद यूनिवर्सिटी जाने की तैयारी करने लगे। यूनिर्सिटी में भी उस दिन कांग्रेस के काफीले पर हमले की चहुओर चर्चा रही। इसके बाद पढ़ाई में व्यस्त हो गए हम सब... यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई... आगे चली इसमें पता चला जब हम दोपहर में लाइब्रेरी कक्ष में टीवी देख रहे थे तब कि नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दीपक पटेल की भी नक्सलियों ने गोली मारकर बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया है। इस घटना ने मुझे दुखी कर दिया था। मैं दोपहर में ही वापस आ गया, इस घटना से अपसेट था इसलिए दोपहर में हल्का खाना लेकर मैं अपने रूम में आया और सो गया। शाम को मेरे दोस्तों ने जगाया, इसके बाद हसी मजाक और ठीठोली में समय गुजर गया। शाम को प्राइम टाइम और उसके बाद देर रात तक हमारी टोली टीवी के सामने बैठी रही, कभी न्यूज चैनल तो कभी डांस कांपिटीशन देखते रहे। दूसरे, तीसरे तीन हमें यह पता चला कि घायल विद्याचरण शुक्ल को बड़े हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है, जहां वे गंभीर हैं और फिर पता चला कि वे भी इस  दुनिया में नहीं रहे। इस हमले में नक्सलियों ने कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी का सफाया कर दिया था। कांग्रेस के ऊपर हुए हमला के पीछे कई आरोप लगे, जहां एक ओर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का नाम लिया गया, तो वहीं इसी वर्ष होने वाले चुनाव में कांग्रेस की जीत होने के भय से भाजपा द्वारा कराया गया हमला बताया गया। वहीं बुद्धिजीवियों ने इसे कायराना हमला भी बताया। जो भी हो बड़ी बेरहमी से कांग्रेस का खून किया गया था, इस हमले में नक्सलियों ने साफ कर दिया था कांग्रेस को और यह भी कि उनका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ भय पैदा करना है। यह हमला इतिहास के पन्ने में अपना स्थान बनाया, इसलिए भी क्योंकि इसके बाद कांग्रेस को हार झेलनी पड़ी। इसके बाद जांच अधिकारी नियुक्त हुए, एसपी सस्पेंड हुए, आईजी का ट्रांसफर हो गया। कई कार्रवाई चली, मामला एनआईए को सौंप दिया गया और जांच के लिए न्यायिक जांच आयोग का गठन भी किया गया। वहीं मैं अपना इग्जाम देकर अंबिकापुर लौट गया। वहां से वापस जुलाई में लौटा और तीसरे सेमेंस्टर की पढ़ाई शुरू कर दिया। इस दौरान जॉब की तलाश भी तेज थी, आर्थिक मदद मिले इसके लिए प्रयासरत था, तभी ईटीवी में ट्रेनी के रूप में जगह मिली। यहां पर ब्रेकिंग डेस्क में मौका स्टेट ब्यूरोचीफ मनोज सिंह बघेल ने मौका दिया। वहीं जुलाई खत्म होते ही अगस्त 2013 में मुझे ईटीवी ज्वाइन करने का मौका दिया गया। यह मौका ईटीवी के नए कलेवर जो कि टीवी 18 के साथ जुड़ने के बाद मिला था। अपनी कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद मुझे 12 अगस्त 2013 को ईटीवी में ज्वाइनिंग करनी थी। मैं 10 अगस्त को प्रक्रिया पूरी कर वैनगंगा एक्सप्रेस से रायपुर के प्लेटफार्म नंबर एक से ट्रेन हैदराबाद के लिए चल दिया। यहां मुझे हिंदी सेंट्रल डेस्क में जगह दिया गया। वापसी किया तो मुसीबतों के साथ, यूनिवर्सिटी में पेपर देने से रोक दिया गया, बड़ी जद्दोजहद के बाद मौका मिला तो परसेंटेज मार खा गया। इसके बाद यहीं से मेरी लाइन भी भटक गई क्योंकि मैं छत्तीसगढ़ का चुनाव खत्म होने का कवरेज कर वापस हुआ और परिणाम 10 दिसंबर 2013 को आया। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी वह भी तीसरी बार, मैं अपनी परीक्षा देकर इस शर्त पर वापस हैदराबाद लौटा की वहां से हमेशा के लिए छुट्‌टी ले लूंगा। सच कहूं तो मन नहीं था, कि मैं इस जॉब को छोड़ूं क्योंकि यहां से मैं न तो ज्यादा सिख पाया था और न ही मैं ज्यादा कुछ कर पाया था। नाम भी नहीं हुआ था, अनजान की तरह लौटना मैं नहीं चाहता था, लेकिन मजबूरी थी मेरे चौथे और अंतिम सेमेंस्टर का इग्जाम देना था। इसलिए मन मारकर मैं 12 जनवरी को हैदरा बाद पहुंच गया, मेरे लिए यहां नोटिस जारी हो चुका था। मेरे पहुंचने पर कारण पूछा गया, मैं एचआर को जानकारी दिया, फिर बताया कि मैं जॉब नहीं कर पाउंगा, पहली बार रिजाइन कर रहा था, वह भी लिखित में। मेरे लिए रिजाइन लेटर भी डेस्क पर सीनियर इंदू दी ने लिखी। मैं साइन किया, सभी से विदा लिया और लौट गया अपनी नई मंजिल की तलाश में। यह मंजिल क्या थी, पता नहीं, लेकिन हां उससे बेहतर जिंदगी नहीं जी पाया। क्योंकि जागते हुए सपना देखा जब टूटता है तो इंसान को दर्द भी होता है और टूट भी जाता है। मैं सभंला भी और खड़ा होने का लगातार प्रयास करता रहा। इसी सब उधेड़बुन में अप्रैल आ गया और डिजटेशन की तैयारी के साथ ही पत्रकारिता विभाग का गोद ग्राम के लिए काम शुरू कर दिया। विभाग हेड पंकज नयन पांडे के मार्गदर्शन में सभी कार्य पूरा कर दूसरे दिन प्रजेंटेशन दिया। मुझे नहीं पता था, कि उनके दिमाग में क्या खुरापात चल रही है, मेहनत मैं किया, प्रजेंटेशन मैं तैयार किया, लेकिन उन्होंने मेरे जूनियर को प्रजेंट करने का मेरे साथ मौका दिया। मैं उस समय मजबूर था, लेकिन अब नहीं हूं। और कह सकता हूं कि यह मुझे हमेशा छोटा दिखाने के लिए नीच हरकत किया गया। खैर मैं उस यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता की पढ़ाई करने गया था, छात्र बनकर, लौटा भी एक छात्र बनकर, पत्रकार मैं पहले से था और बाद तक रहा। साथ ही पंकज नयन पांडेय जी ने इतना सब होने के बाद भी उनके कहने के बाद भी कि मैं प्रजेंटेशन को लीड करूं तैयार करूं, प्रजेंट करूं सब कुछ करने के बाद भी, मुझे प्रेक्टिकल मार्क कम देकर साथी जो उस सेमेस्टर में भी कम दिन ही आए उन्हें ज्याद मार्क्स दिए गए। खैर मेरा मिशन रिजल्ट निकलने तक जारी रहा। मैं टॉपर था, हूं और रहुंगा के लिए जो मेहनत किया था वह परिणाम मेरे सामने आया। मैं डिपार्टमेंट में पहला स्थान पाया और वह तमाचा देकर लौट गया, हमेशा के लिए। इसके बाद मैं 1 जुलाई को दैनिक भास्कर ज्वाइन कर लिया था....।

आने वाली कड़ी...

 झीरम संस्मरण- 2

शनिवार, 9 अप्रैल 2016

झीरम जिसका हिस्सा...दंडकारण्य राक्षसों की निवास स्थाली

रामचरित मानस में जिस स्थान का वर्णन राक्षसों के निवास के लिए उल्लेखित हो छत्तीसगढ़ के ऐसे दक्षिणी भाग रहस्य मय और रोमांचक क्यों न हो। छत्तीसगढ़ को जो लोग जानते हैं उन्हें यह भी जानना चाहिए की इसके उत्तरी भाग में सरगुजा (देवता और हाथियों का क्षेत्र) तो दक्षिणी भाग में स्थित है दंडकारण्य (दंडक राक्षस का निवास) जिसका हिस्सा बस्तर है। इसी बस्तर संभाग का मुख्यालय और जगदलुपर जिला का जिला मुख्यालय जगदलपुर में है। इसी जगदलपुर के आस पास इस अनजान झीरम लेख और झीरम ब्लॉग को आप पड़ेंगे। इस ब्लॉग के लेख जगदलपुर और बस्तर संभाग में घटी नक्सल घटनाओं से संबंधित हैं... यह आगे भी रहेंगी। यह बताना यहां जरूरी है कि जब भी जगदलपुर का जिक्र हुआ है तो दिल्ली जरूर जागी है। जगदलपुर में होने वाली छोटी हलचल भी दिल्ली तक पहुंच रखती है। यह नई बात नहीं है क्योंकि यहां के राजा हमेशा अपनी विशिष्ट पहचान रखते थे। इसलिए बस्तर अपने मुद्दे और सस्याओं के कारण हमेशा चर्चा में रहा हैं। घने वन और वादी के बीच जगदलपुर चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा बसा है। कहा जाता है कि काकतिया राजा जिसे पाण्डवों का वंशज कहा जाता है ने जगदलपुर को अपनी अंतिम राजधानी बनाया और इसे विकसित किया। इसका नाम पूर्व में जगतुगुड़ा था बाद में बदलकर जगदलपुर हुआ। जगदलपुर को चौराहों का शहर भी कहा जाता है। इसे बहुत ही खूबसुरत तरीके से बसाया गया है। विभिन्न संस्कृतियों के संगम होने के साथ ही यहां जगन्नाथ पीठ का भव्य मंदिर और देवी दंतेश्वरी का मंदिर है। सबसे ज्यादा प्रचलित यहां के 40 दिनों तक चलने वाला दशहरा है। इसकी प्रसिद्धि विश्व के कोने-कोने में है और यही वजह है कि यहां दुनिया भर से लोग चलकर आते हैं। कहा जाता है न जहां अच्छाई होती है वहीं बुराई भी पनपता है बस यही वजह है कि इस हसीन वादी क्षेत्र में नक्सल नामक बुराई उभरी और गाजर घांस की तरह पनपती चली गई। जगदलपुर का वनांचल क्षेत्र नक्सली गतिविधियों का स्थाई ठिकाना हो गया। यह सबसे ज्यादा प्रसिद्धि 2010 में पाया, लेकिन उससे कहीं ज्यादा चर्चा में 2013 में आया। जी हां जगदलपुर के दरभा थाना क्षेत्र की छोटे- मोड वाली गहरी घाटी दरभा और झीरम को दुनिया जानती तक नहीं थी। यह अनजान घाटी 25 मई 2013 के बाद अपना इतिहास नक्सलियों के ठिकाने के लिए लिख दी। इसके बाद अब यह इतिहास के पन्ने में अपने भयानक और खून की प्यासी होने को लेकर हमेशा चर्चा में रहेगी। हालांकि इस वादी और इस क्षेत्र में पहली बार खून नहीं बहा। इस क्षेत्र में पहली बार हमला और नर संहार नहीं हुआ। नक्सली के बड़े हमले इस पूरे क्षेत्र में कई सालों से तो चल ही रहे हैं। नक्सली से पहले भी इन जंगल, पहाड़ों के बीच में छिपे हमलावर रहते थे। तभी तो इस क्षेत्र का नाम दंडकारण्य पड़ा था। इसका उल्लेख रामचरित मानस में भी है। दंडकारण्य पूर्वी मध्य भारत का वह भौतिक क्षेत्र है जो लगभग 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस इलाके के पूर्व की सीमा पर पूर्वी घाट हैं तो पश्चिम में अबूझमाड़ की पहाड़ियां। दंडकारण्य छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना राज्य की सीमा है। इसका विस्तार पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर तो उत्तर से दक्षिण तक लगभग 320 किमी है। रामचरित मानस में उल्लेखित राक्षस दंडक के निवास के कारण ही इस क्षेत्र का नाम दंडक वन पड़ा था। प्राचीन समय में नल, वाकाटक और चालुक्य वंशजों का इस क्षेत्र पर सफलतापूर्वक शासन करने का उल्लेख मिलता है। इस क्षेत्र में मूलत: गोंड आदिवासी निवासरत हैं। बात अगर क्षेत्र की करें तो यहां का अधिकतर भाग रेतीला और समतली है, जिसकी ढलान क्रमश: उत्तर से दक्षिण-पश्चिम की तरफ है। दंडकारण्य में व्यापक वनाच्छादित पठार और पहाड़ियां हैं, यह पूर्व दिशा से अचानक उभरती हैं और पश्चिम की ओर धीरे-धीरे इनकी ऊंचाई कम होती जाती है। यहां कई अपेक्षाकृत विस्तृत मैदान भी हैं। इस क्षेत्र की जल निकासी महानदी जिसकी सहायक नदियों में तेल जोंक, उदंती, हट्टी और सांदुल शामिल हैं और गोदावरी जिसकी सहायक नदियों में इंद्रावती और साबरी शामिल हैं। पठार और पर्वतीय इलाकों में दोमट मिट्टी की पतली परत है। वहीं मैदानी इलाके और घाटियों में उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी है। इस क्षेत्र में आर्थिक रूप से कीमती साल के नम वन हैं। यह कुल क्षेत्र के लगभग आधे हिस्से में फैले हैं। दंडकारण्य क्षेत्र की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है, फसलों में धान (चावल), दालें और तिलहन शामिल हैं। उद्योगों में धान और दलहन (अरहर) की मिलें, आरा घर, अस्थि-चूर्ण निर्माण, मधुमक्खी पालन और फर्नीचर निर्माण उद्योग के साथ ही कई कंपनियां क्षेत्र में अपना विस्तार कर चुकी हैं। दंडकारण्य में बॉक्साइट, लौह अयस्क और मैगनीज के भंडार हैं। इसी क्षेत्र में केंद्र सरकार ने 1958 में पाकिस्तान(वर्तमान बंगलादेश) से आए शरणार्थियों की मदद के लिए दंडकारण्य विकास प्राधिकरण का गठन किया। यहां पखानंजूर जलाशय, जगदलपुर, बोरेगांव और उमरकोट में काष्ठ शिल्प केंद्र और शरणार्थी पुनर्वास क्षेत्रों में बलांगीर-कोल्लम रेलवे परियोजना सहित सड़कों और रेलमार्गों का निर्माण किया। मुख्य रुप से विमानों के इंजन फैक्ट्री सुनाबेड़ा में स्थित है। राष्ट्रीय खनिज विकास निगम बैलाडीला में लौह अयस्क का उत्पादन करता है। दंडकारण्य के महत्त्वपूर्ण नगरों में सुमार रहा है जगदलपुर, भवानीपटना और कोरापुर हैं। कहानी यहीं से शुरू होती है जगदलपुर और झीरम की। यह दंडकारण्य का क्षेत्र हैं और पाकिस्तान के शरणार्थियों का सराय। नासूर नक्सल का गढ़, इनका सहयोग स्थानीय लोग कुछ डरकर तो कुछ उस विचारधारा से जुड़कर दे रहे हैं। इतना ही नहीं इनसे कुछ लोग लाभ कमाने के लिए तो कुछ वास्तविक पीड़ित लोग भी जुड़ गए हैं जो शासन के दूषित व्यवस्था से परेशान थे। इन्हीं में से कुछ की हैवानियत ने इस दंडकारण्य क्षेत्र को एक बार फिर बताया कि यहां शैतानों और राक्षसों का साम्राज्य अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। इसकी चर्चा झीरम के हमले से शुरू होता है और दूर तक चला जाता है। प्रमुख शहर जगदलपुर से 45 किमी दूर झीरम को 25 मई 2013 को चर्चा में लाया। इस अनजान घाटी को देश दुनिया में चर्चित कर दिया। हालांकि यहां नक्सलियों का बस का दोष देना गलत है, क्योंकि उन्हें नक्सली बनने पर कहीं न कहीं राज्य और देश की सरकारों की व्यवस्थाओं ने मजबूर किया है। कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा, जनता दल, समाज वादी और न जाने कितनी ही पार्टियां है जो इसके लिए जिम्मेदार हैं। सुकमा-जगदलपुर-कोंटा राष्ट्रीय राज मार्ग पर सुकमा से लगभग 45 किमी दूर और जगदलपुर लगभग 45 पहले सुनसान सन्नाटा वाली चौड़ी सड़कों को अपने सीने में बिछाए खुबसुरत वादी है। यह लगभग 30 किमी क्षेत्र में छोटे-छोटे मोड़ का क्षेत्र है। इसमें 100-100 मीटर ऊंची पहाड़ियां है तो दूसरी ओर इतनी ही गहरी खाई भी है। सुकमा से जगदलपुर की ओर जाने पर पहले झीरम फिर दरभा थाना आता है। झीरम दरभा क्षेत्र में पड़ने वाली वादी है। यह कब खून की प्यासी हो जाए कोई नहीं जानता। यह क्षेत्र तीन राज्यों से जुड़ी हुई है... छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्रप्रदेश। इस अनजान झीरम को 25 मई 2013 के शाम 4.45 बजे से पहले बस्तर संभाग के लोग और इस क्षेत्र से गुजरने वाले राहगीरों के अलावा शायद ही किसी ने नाम भी सुना हो। वहीं यह शब्द 4.45 बजे के बाद इतनी बार लिया गया, इतना इस नाम को लोगों ने सुना और कहा की यह कहानी बन कर शुरू हो गई। सच ही तो है, यह कहानी 25 मई की शाम घटी और इस अनजान झीरम के लिए न मिटने वाला दाग दे गई। दरभा शिव मंदिर से 4 किमी पहले घुमावदार मोड़ और ऊंचे पहाड़ व गहरी खाई के बीच नक्सलियों का हमला मन में भय पैदा कर लोगों के दिल में डर का जगह बना ली।

आने वाली कड़ी...

 झीरम संस्मरण- 1