मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

झीरम संस्मरण-1

 
मुझे याद है, मैं कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग का छात्र था। अपने दूसरे सेमेस्टर की तैयारी में जुटा हुआ था। उस दिन 25 मई 2013 था, सुबह मैं अपने साथियों के साथ यूनिवर्सिटी गया। यहां दोपहर 3.30 तक लाइब्रेरी में पुस्तकों के बीच उलझा रहा। इसके बाद कुछ आवश्यक पुस्तकों को लेकर हॉस्टल लौट आया। मेस में खाने खाने के बाद मैं अपने रूम में आराम करने चला गया। लगभग 45 मीनट आराम किया। इस समय इग्जाम की सभी तैयारी में भीड़े थे। तेज गर्मी से परेशान होकर मैं हॉस्टल के टीवी रूम में पहुंचा। यहां पर बैठा चैनल बदल-बदल कर टीवी देख रहा था। इसमें राज्य के स्थानीय न्यूज चैनल खासकर आईबीसी 24, जी 24 और ईटीवी पर ज्यादा फोकस था। साथ ही मुवी भी चला रहा था।

 इसी दौरान मैने झीरम शब्द पहली बार शाम लगभग 5.15 बजे सुना। यह न्यूज चैनल ईटीवी पर चल रहा था। इसमें तीन फूल स्क्रीन ब्रेकिंग न्यूज फ्लैस हुए। इसमें बताया गया कि कांग्रेस के परिवर्तन यात्रा पर नक्सलियों ने हमला किया है। यह भी बताया गया कि कांग्रेस की यात्रा सुकमा से जगदलपुर के लिए रवाना हुआ था। इसमें बड़े नेता शामिल हैं, और इसमें एक नाम नंदकुमार पटेल का लिया गया। मुझे याद है मैं पहली बार नंदकुमार पटेल से 2012 में अंबिकापुर के राजमोहनी देवी सभा भवन में मिला था। यहां पर किसी सम्मेलन में वे शिरकत करने पहुंचे थे। उनके मिलनसार व्यवहार से मैं वाकिफ था। इस नाम को सुनते ही मैं चौकन्ना हो गया, और हॉस्टल में मौजूद दोस्तों को घटना की जानकारी देने के लिए तेज आवाज में चिल्लाया। मेरी आवाज सुनते ही सभी भागते हुए से पहुंचे। इसके बाद हम सभी कभी ईटीवी तो कभी आईबीसी और जी छत्तीसगढ़ को देखना शुरू किया। शाम पांच बजे के बाद लगातार हो रही ब्रेकिंग में कई नेताओं के मारे जाने की जानकारी आने लगी। हम विचलित थे, क्या हुआ है, नक्सली पहली बार राज्य में किसी पार्टी के कार्यक्रम पर हमला किए हो। समय के साथ घटना स्थल की परिस्थितियां पता चलते गई। चैनलों में इस घटना की लगातार रिपोर्टिंग हो रही थी। बीच-बीच में राज्य और केंद्र के नेताओं की संवेदनाएं आ रही थी। शाम 6.30 बजे हमारे चाय टाइम में यह न्यूज पूरी तरह से पूरी हो गई थी। पुलिस मौके पर पहुंच कर मोर्चा संभाल लेने की जानकारी चैनल में प्रसारित हुआ और नक्सलियों के भाग जाने की बात कही गई। इसके बाद हम सभी साथी भी चाय की चुस्की लेते हुए इस मामले पर चर्चा करते रहे। इसके बाद हम सब घुमने निकल गए। गर्मी ज्यादा थी और सीनियर की लगातार उपस्थिति बढ़ती जा रही थी, उनके साथ भी घटना का डिस्कसन जारी था, सभी रिपोर्ट को लेकर जानकारी ले रहे थे। मैं शुरू से न्यूज देखा था, इसलिए जानकारी मेरे पास ज्यादा थी। इसलिए मैं सबको बता रहा था कि घटना कहां हुआ है, कितने लोग उस रैली में शामिल थे अनुमानित जो टीवी चैनल पर थे।   इसके बाद शाम 8.30 बजे तक हम घुमते रहे। वहीं खाना खाने के बाद एक बार फिर टीवी रूम में चहल पहल होने लगी। प्राइम टाइम को देखने के लिए पहले ही कई छात्र टीवी रूम में पहुंच चुके थे। वहीं खाना खाने में धीमी चाल होने के कारण मैं लगभग 9 बजे टीवी रूम पहुंचा। यहां सभी मौजूद थे सीनियर, जूनियर। मैं पहुंचा और अपना जगह लिया। इसके बाद मेरे दबाव डालने पर एक बार फिर स्थानीय चैनल को लगाया गया, उस समय सब मनोरंजन चैनल देख रहे थे। डांस कांपटिशन को हटाकर न्यूज चैनल लगाने पर जैसा घर में वातावरण बनता है कुछ वैसा ही वातावरण वहां भी बन गया। इसके बाद भी ज्यादातर ने मेरा समर्थन किया। हम सब फिर से एक बार न्यूज चैनल देखने लगे, रायपुर में थे तो स्थानीय नेताओं के नाम जानते थे। इसी दौरान पता चला कि विद्याचरण शुक्ल जो की मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के पुत्र हैं को गोली लगी है। वे गंभीर हालत में जगदलपुर रिफर किए गए हैं। वहीं मौके पर बस्तर के नेता महेंद्र कर्मा का शव गोलियों से छलनी मिलने की जानकारी भी आई। वहीं नंदकुमार पटेल और उनके बेटा दीपक पटेल के गायब होने की सूचना मिली। कुल मिलाकर 40 से अधिक लोगों के गोली लगने की जानकारी मिली। प्रदेश में ताड़मेटला कांड के बाद यह बड़ी घटना थी, और अपने तरह की पहली घटना। इसमें किसी पार्टी पर हमला हुआ हो, नेताओं को गोली मारी गई हो यह पहली बार हुआ था। हमला तो नेताओं के ऊपर पहले भी हुए थे, लेकिन पहली बार इस तरह सामूहिक रूप से नेताओं का नरसंहार किया गया था। सूचना भयानक थी, हमने खबर कंफर्म करने के बाद फिर से मनोरंजन चैनल देखा। इसके बाद एक-एक कर सब सोने चले गए। मेरा खाना और सोना दोनों लेट होने की आदत थी, इसलिए मैं देर तक टीवी रूम में बिताया। कभी मूवी देखता तो कभी न्यूज ऐसे करते हुए मैं रात 1 बजे तक टीवी के सामने डटा रहा। इसके बाद मैं अपने कमरे में चला गया और दूसरे दिन सुबह का इंतजार करने लगा। सोता जरूर देर से था, लेकिन सुबह जगने की आदत तेज थी। मैं दूसरे दिन सुबह 6 बजे जग गया। घूमने निकला तो न्यूज पेपर मिल गया, उस घटना को जल्दि से पढ़ने के बाद दूसरी अन्य खबरों को देखा और फिर घुमने निकल गया। वापस आया तो इस घटना को लेकर ही सभी चर्चा कर रहे थे। मैं भी ब्रश करके नाश्ते पर पहुंचा तो चर्चा जारी थी, मैं भी ग्रुप डिस्कन में भाग लिया। इसके बाद यूनिवर्सिटी जाने की तैयारी करने लगे। यूनिर्सिटी में भी उस दिन कांग्रेस के काफीले पर हमले की चहुओर चर्चा रही। इसके बाद पढ़ाई में व्यस्त हो गए हम सब... यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई... आगे चली इसमें पता चला जब हम दोपहर में लाइब्रेरी कक्ष में टीवी देख रहे थे तब कि नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दीपक पटेल की भी नक्सलियों ने गोली मारकर बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया है। इस घटना ने मुझे दुखी कर दिया था। मैं दोपहर में ही वापस आ गया, इस घटना से अपसेट था इसलिए दोपहर में हल्का खाना लेकर मैं अपने रूम में आया और सो गया। शाम को मेरे दोस्तों ने जगाया, इसके बाद हसी मजाक और ठीठोली में समय गुजर गया। शाम को प्राइम टाइम और उसके बाद देर रात तक हमारी टोली टीवी के सामने बैठी रही, कभी न्यूज चैनल तो कभी डांस कांपिटीशन देखते रहे। दूसरे, तीसरे तीन हमें यह पता चला कि घायल विद्याचरण शुक्ल को बड़े हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है, जहां वे गंभीर हैं और फिर पता चला कि वे भी इस  दुनिया में नहीं रहे। इस हमले में नक्सलियों ने कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी का सफाया कर दिया था। कांग्रेस के ऊपर हुए हमला के पीछे कई आरोप लगे, जहां एक ओर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का नाम लिया गया, तो वहीं इसी वर्ष होने वाले चुनाव में कांग्रेस की जीत होने के भय से भाजपा द्वारा कराया गया हमला बताया गया। वहीं बुद्धिजीवियों ने इसे कायराना हमला भी बताया। जो भी हो बड़ी बेरहमी से कांग्रेस का खून किया गया था, इस हमले में नक्सलियों ने साफ कर दिया था कांग्रेस को और यह भी कि उनका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ भय पैदा करना है। यह हमला इतिहास के पन्ने में अपना स्थान बनाया, इसलिए भी क्योंकि इसके बाद कांग्रेस को हार झेलनी पड़ी। इसके बाद जांच अधिकारी नियुक्त हुए, एसपी सस्पेंड हुए, आईजी का ट्रांसफर हो गया। कई कार्रवाई चली, मामला एनआईए को सौंप दिया गया और जांच के लिए न्यायिक जांच आयोग का गठन भी किया गया। वहीं मैं अपना इग्जाम देकर अंबिकापुर लौट गया। वहां से वापस जुलाई में लौटा और तीसरे सेमेंस्टर की पढ़ाई शुरू कर दिया। इस दौरान जॉब की तलाश भी तेज थी, आर्थिक मदद मिले इसके लिए प्रयासरत था, तभी ईटीवी में ट्रेनी के रूप में जगह मिली। यहां पर ब्रेकिंग डेस्क में मौका स्टेट ब्यूरोचीफ मनोज सिंह बघेल ने मौका दिया। वहीं जुलाई खत्म होते ही अगस्त 2013 में मुझे ईटीवी ज्वाइन करने का मौका दिया गया। यह मौका ईटीवी के नए कलेवर जो कि टीवी 18 के साथ जुड़ने के बाद मिला था। अपनी कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद मुझे 12 अगस्त 2013 को ईटीवी में ज्वाइनिंग करनी थी। मैं 10 अगस्त को प्रक्रिया पूरी कर वैनगंगा एक्सप्रेस से रायपुर के प्लेटफार्म नंबर एक से ट्रेन हैदराबाद के लिए चल दिया। यहां मुझे हिंदी सेंट्रल डेस्क में जगह दिया गया। वापसी किया तो मुसीबतों के साथ, यूनिवर्सिटी में पेपर देने से रोक दिया गया, बड़ी जद्दोजहद के बाद मौका मिला तो परसेंटेज मार खा गया। इसके बाद यहीं से मेरी लाइन भी भटक गई क्योंकि मैं छत्तीसगढ़ का चुनाव खत्म होने का कवरेज कर वापस हुआ और परिणाम 10 दिसंबर 2013 को आया। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी वह भी तीसरी बार, मैं अपनी परीक्षा देकर इस शर्त पर वापस हैदराबाद लौटा की वहां से हमेशा के लिए छुट्‌टी ले लूंगा। सच कहूं तो मन नहीं था, कि मैं इस जॉब को छोड़ूं क्योंकि यहां से मैं न तो ज्यादा सिख पाया था और न ही मैं ज्यादा कुछ कर पाया था। नाम भी नहीं हुआ था, अनजान की तरह लौटना मैं नहीं चाहता था, लेकिन मजबूरी थी मेरे चौथे और अंतिम सेमेंस्टर का इग्जाम देना था। इसलिए मन मारकर मैं 12 जनवरी को हैदरा बाद पहुंच गया, मेरे लिए यहां नोटिस जारी हो चुका था। मेरे पहुंचने पर कारण पूछा गया, मैं एचआर को जानकारी दिया, फिर बताया कि मैं जॉब नहीं कर पाउंगा, पहली बार रिजाइन कर रहा था, वह भी लिखित में। मेरे लिए रिजाइन लेटर भी डेस्क पर सीनियर इंदू दी ने लिखी। मैं साइन किया, सभी से विदा लिया और लौट गया अपनी नई मंजिल की तलाश में। यह मंजिल क्या थी, पता नहीं, लेकिन हां उससे बेहतर जिंदगी नहीं जी पाया। क्योंकि जागते हुए सपना देखा जब टूटता है तो इंसान को दर्द भी होता है और टूट भी जाता है। मैं सभंला भी और खड़ा होने का लगातार प्रयास करता रहा। इसी सब उधेड़बुन में अप्रैल आ गया और डिजटेशन की तैयारी के साथ ही पत्रकारिता विभाग का गोद ग्राम के लिए काम शुरू कर दिया। विभाग हेड पंकज नयन पांडे के मार्गदर्शन में सभी कार्य पूरा कर दूसरे दिन प्रजेंटेशन दिया। मुझे नहीं पता था, कि उनके दिमाग में क्या खुरापात चल रही है, मेहनत मैं किया, प्रजेंटेशन मैं तैयार किया, लेकिन उन्होंने मेरे जूनियर को प्रजेंट करने का मेरे साथ मौका दिया। मैं उस समय मजबूर था, लेकिन अब नहीं हूं। और कह सकता हूं कि यह मुझे हमेशा छोटा दिखाने के लिए नीच हरकत किया गया। खैर मैं उस यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता की पढ़ाई करने गया था, छात्र बनकर, लौटा भी एक छात्र बनकर, पत्रकार मैं पहले से था और बाद तक रहा। साथ ही पंकज नयन पांडेय जी ने इतना सब होने के बाद भी उनके कहने के बाद भी कि मैं प्रजेंटेशन को लीड करूं तैयार करूं, प्रजेंट करूं सब कुछ करने के बाद भी, मुझे प्रेक्टिकल मार्क कम देकर साथी जो उस सेमेस्टर में भी कम दिन ही आए उन्हें ज्याद मार्क्स दिए गए। खैर मेरा मिशन रिजल्ट निकलने तक जारी रहा। मैं टॉपर था, हूं और रहुंगा के लिए जो मेहनत किया था वह परिणाम मेरे सामने आया। मैं डिपार्टमेंट में पहला स्थान पाया और वह तमाचा देकर लौट गया, हमेशा के लिए। इसके बाद मैं 1 जुलाई को दैनिक भास्कर ज्वाइन कर लिया था....।

आने वाली कड़ी...

 झीरम संस्मरण- 2

1 टिप्पणी:

  1. बेहद संजीदगी से लिखा आपने साफगोई भी है और सत्यता भी,संघर्ष और अपने लक्ष्यों के लिए कठिन परिश्रम की अथक शृंखलाओं के बाद विजय की गर्वित छांव का भी आनंद है,मेरी शुभकामनाओं हैं आपके लिए।

    जवाब देंहटाएं